
*जिनशासन की राह में पहला कदम सप्त व्यसन का त्याग करना है–सुनयमति*
प्रतिदिन लिये जाने वाले छोटे छोटे नियम एक दिन बड़े संयम पथ की ओर अग्रसर करते हैं।जैन धर्म धारण करने वाले को अष्ट मूलगुण अर्थात मद्य,मधु,मांस और पांच उदम्बर फलों के सेवन का त्याग करना आवश्यक होता है।बड़, पीपल,गुलर,कठूमर और अंजीर ये पांच उदम्बर फल कहलाते हैं।अनेक त्रस जीवों से भरे होने के कारण इन फलों का सेवन नहीं करना चाहिये।इसके साथ ही जुआं, सट्टा, परस्त्रीगमन आदि सात व्यसनों का भी त्याग करना अनिवार्य बताया गया है।इन सबका त्याग करके ही जैन शासन की राह में आगे बढ़ सकते हैं।
नवकार नगर स्थित दिगम्बर जैन मुनिसुव्रतनाथ जिनालय में नियमित प्रवचनमाला के दौरान आर्यिका सुनयमति जी ने उक्त बात कही।उन्होंने कहा कि आज हम सभी अपने बच्चों को मात्र किताबी कीड़ा बना रहे हैं जिससे बच्चे संस्कारो और धर्म की बातों को भूलते जा रहे हैं।जन्म के 8 वर्ष के बाद बालक को संस्कारो की शिक्षा देना प्रारम्भ कर देना चाहिये।ताकि हम उसे श्रेष्ठ श्रावक बना सके।जैन संस्कार किसी कालेज,स्कूल में नहीं अपने घर से दिये जा सकते है।हमे ऐसा प्रयास करना चाहिये कि हमारा बालक जिन कुल का गौरव बने।व्रतों का निष्ठा एवम सरलतापूर्वक पालन और चारित्र की शुद्धि मोक्ष का प्रथम सोपान है। मुनि सेवा समिति के प्रचार मंत्री सुनील जैन एवं प्रेमांशु चौधरी ने बताया कि आर्यिका माताजी के सानिध्य में पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित इष्टोंदेश ग्रन्थ पर प्रतिदिन स्वाध्याय किया जा रहा है।दोपहर में भी महिलाओं के लिये विशेष कक्षाएं ली जाकर तत्वज्ञान की शिक्षा दी जा रही है।सांयकाल में आरती के साथ ही क्षुल्लक जी सुपर्वसागर जी द्वारा बच्चों के लिये जैन बालबोध पढ़ाया जा रहा है।गुरुओं की आहारचर्या का सौभाग्य वन्दना अविनाश जैन एवम हीना अर्पित झांझरी परिवार ने प्राप्त किया।